Description
भगवान श्रीरामकृष्ण के अन्तरंग-शिष्य तथा रामकृष्ण संघ के तृतीय अध्यक्ष स्वामी अखण्डानन्दजी के कुछ उद्बोधक संस्मरण और उपदेश इसमें संकलित हुए हैं। स्वामी अखण्डानन्दजी का समूचा जीवन, श्रीरामकृष्ण के द्वारा उपदिष्ट ‘शिवभाव से जीवसेवा’ इस मन्त्र का मूर्त रूप था। इस पुस्तक में संकलित उनके संभाषणों से उनके ईश्वरनिर्भरता, त्याग, तपस्या, मानव-प्रेम, करुणा आदि कितनेही गुणों का परिचय पाकर साधक आश्चर्यमुग्ध होता है और साथ ही अपने स्वयं के जीवन को भी इसी दिशा में मोड़ने की प्रेरणा भी पाता है। पुस्तक के लेखक स्वामी निरामयानन्दजी को बाल्यकाल से ही स्वामी अखण्डानन्द के सान्निध्य का लाभ हुआ था। इन प्रसंगों में प्राप्त अखण्डानन्दजी के उपदेशों को वे अपने दैनंदिनी में लिखकर रखते थे। बाद में इन्हें बंगला मासिक-पत्रिका ‘उद्बोधन’ में प्रथम प्रकाशित किया गया और फिर पुस्तकाकार में। लेखक ने इस पुस्तक में स्वामी अखण्डानन्दजी के लिए, कई स्थानोंपर ‘बाबा’ सम्बोधन का प्रयोग किया है। भक्तों के बीच अखण्डानन्दजी इसी नाम से परिचित थे। स्वयं का उल्लेख उन्होंने ‘भक्त’ शब्द से किया है।
Contributors : Swami Niramayananda, Swami Videhatmananda